अब क्या कहूँ ?
कैसे कहूँ ?
किस से कहूँ ?
मैं कुछ अब
बहाने से |
कभी इधर जाऊं
कभी उधर जाऊं
कभी ये पुछे
कभी वो पुछे
कभी इसको बताऊं
कभी उसको सुनाऊं
कुछ मिले फुर्सत
तो तुम्हे दिखाऊं
है एक अनार
और सौ बीमार
किस को समझाऊं
किस को मनाऊं
अन्ना हस के बोले
तुम को तो सब में
मतभेद नजर आते हैं
मैंने तो पेहना
है चश्मा सफेद
मुझ को तो बस
सब सफेद नजर
आते है ||
अशोक"अकेला"
क्या बात है यार चाचू ,सफ़ेद रंग में तो सातों ही रंग होते हैं.
ReplyDeletewow!..nice creation !
ReplyDeleteतुम को तो सब में
ReplyDeleteमतभेद नजर आते हैं
मैंने तो पेहना
है चश्मा सफेद
मुझ को तो बस
सब सफेद नजर
आते है ||
यथार्थपरक रचना.... हार्दिक बधाई।