अशोक सलूजा |
मेरे आभासी रिश्तों के दोस्तों,बच्चे-बच्चियों!
आप सब का बहुत-बहुत आभार ,आप ने मुझे पड़ा ,समझा,
अपनेपन का एहसास कराया और प्यार,इज्जत बख्शी |
आप के इस ब्लाग-जगत में, मैं दिसंबर २०१० में आया |
आज-कल में ही मैने ब्लाग बुखार पर एक "पाबला" जी की
पोस्ट पड़ी ,जिसमें वो अपने पांच-वर्ष ,ब्लागिंग पर बिताए का
निचोड़ बता रहे है | और इसके साथ-साथ "आभासी रिश्ते" का लफ्ज
मुझे पड़ने को मिला "निर्मला कपिला " जी के ब्लाग पर |
बस इन्हें पड़ने के बाद मेरे दिल की सारी शकाएँ ,सारे भ्रम पलने
से पहले ही दूर हो गये | "पाबला" जी को पांच वर्ष की मेहनत से
मिले तुजर्बे को मैने उनकी नकल कर के अपने पांच महीने में ही
हासिल कर लिया |इस से पहले कि कोई टिप्पणी ऐसी मिले जो मेरे
जाने-अनजाने दिल को दुखा जाये ,जिसका मुझे एहसास भी न हो कि
ऐसा क्यों ...? शायद जिसकी वजह से मैं बाहर कि दुनिया छोड़
आप के ब्लाग-जगत में आया तो फिर यहाँ भी वही | तो फिर अपने
में ही सिमट जाना बेहतर है | आखिर कहीं बजुर्गी का तजुर्बा काम
तो आया ?
मैं तो वैसे ही जब से यहाँ आया हूँ ,यही कहे जा रहा हूँ ,की मैं तो
बिना यहाँ की रीति-रिवाज समझे ,जाने-पहचाने ,भूले-भटके आ गया |
न ज्ञान ,न ध्यान ,न चापलूसी ,न अच्छे शब्दों का बखान |
न किसी की टिप्पणी पाने के काबिल ,न किसी के लेख पर टिप्पणी
देने के काबिल | इसका भी मैं यहाँ पहले आपसे जिक्र कर चुका हूँ |
फिर मैं लिखता क्यों हूँ ? किस लिए लिखता हूँ ?
इसका जवाब मैं अपनी अगली पोस्ट में चंद लाइन्स
में देने की कोशिश जरूर करूँगा |
अब आज की अपील
आज तक अपने बनाये ,पसंद किये ,चाहे आभासी रिश्तों के ब्लागों
को पडूंगा,उनसे कुछ सीखने की कोशिश करूँगा | पर किसी पर टिप्पणी
करने की गुस्ताखी नही करूँगा ,ये तो मेरे बस में है न ..?|
आप के बस में है:- चाहे किसी के ब्लाग पर जाये या न जाये ,टिप्पणी करें या
न करें | प्यार करें.या नफरत ,किसी को खुशी दें या दुःख |किसी के लिखे पर
उसे प्रोत्साहित करें या निंदा |
पर मैं आप से उम्र मैं बड़ा होने के बावजूद ,अपने दोनों हाथ जोड़ कर प्रार्थना
करूँगा की मेरे किसी लिखे पर टिप्पणी करने के प्रत्युतर टिप्पणी पाने या
ब्लाग पर आने की आशा पर कृपया टिप्पणी न करें | मैं इस काबिल नही ......
मेरे लिए आप सब मेरे प्यार,स्नेह,शुभकामनाये और आशीर्वाद के बराबर हिस्सेदार
हैं | मैं ये काम अपना करता रहूँगा |इसके बदले आप से ये चाहुगा की अपने दिल
में मेरे लिए थोडा स्नेह,थोड़ी इज्जत बनाये रखें |बस....
अंत में :- मैं तो अब, तब तक लिखता रहूँगा ,जब तक मेरे हाथ इस काबिल हैं |
दिल में एहसास है ,मेहसूस करने के लिए जज्बात हैं ,वर्ना दिमाग से तो मैं .......?
मेरा तो समय ही इससे कटता है ...और क्या करूं ? चलते-चलते सब से यही
कहूँगा कि.......
सब खुश रहें और स्वस्थ रहें !
आशीर्वाद!
अशोक सलूजा !
सलूजा साहब , सही है ! मैंने तो यह टिपण्णी का मर्ज कभी पाला ही नहीं! बस, एक ही नारा है अपना तो कि जो दे उसका भी भला , जो न दे उसका भी भला ! अगर आपके पास कोई कौशल है तो उसे तो कोई आपसे छीन नहीं सकता ! टिपण्णी वही प्रिय लगती है जो दिल से निकली हो , इसलिए मैं बहुत सीमित मात्रा में जो कुछ प्रिय ब्लॉग है वहीं तक जाता हूँ और टिपण्णी करता हूँ ! आप भी अपने आपमें और अपने लेखन में मस्त रहे यही कामना है ! भाड़ में गई टिप्पणिया !!
ReplyDeleteअशोक जी आप लिखें हम पढ रहे हैं लेकिन आपकी इस बात से सहमत नही कि आप कहीं टिप्पणी नहीं करेंगे क्यों कि अगर आप खुद को बडे{उम्र से} कहते हैं तो ये भी जरूरी है कि आप अपने से छोटेओं का उत्साहवर्द्धन करें, सब से अपने अनुभव बाँटें। आखिर जब एक लेखक मेहनत करता है तो उसे आशा तो होती है कि उसकी रचना को हर कोई पढे लेकिन वो किसी को न पढे अगर पढे भी तो किसी को पता न चले। विचार बांतने से और दूसरों के साथ वार्तालाप से ही लेखन मे आगे बढा जा सकता है। आप बेशक हमारे ब्लाग पर न आयें मगर जब भी आपकी पोस्ट पर अपनी नज़र पडेगी तो जरूर पढेंगे। धन्यवाद।
ReplyDeleteआदरणीय गुरु भाई ,
ReplyDeleteहिंदी ब्लॉग जगत में मेरा अनुभव भी लगभग ऐसा ही है ! यहाँ तरह तरह की समझ वाले लोग सक्रिय हैं जिनसे आनंद कम, कष्ट अधिक मिलता है अतः बहुत भावुक और अच्छे दिल वाले लोगों को चोटें अधिक लगती हैं ! अक्सर लोग आपका लेख पढने से पहले ही आपके बारे में आपने विचार बनाये होते हैं...समय के अभाव में सरसरी नज़र में पढ़कर, बिना सोंचे समझे प्रतिक्रिया देने का रिवाज है यहाँ जो अक्सर संवेदनशील लोगों के लिए अधिक कष्टदायी रहता है !
टिप्पणियां न देने का अथवा कम देने का फैसला बिलकुल ठीक है ...यकीनन लोग चलते रिवाज के कारण, आपके ब्लॉग पर टिप्पणिया नहीं करेंगे ! मगर जो भले हैं जिन्हें अच्छा चाहिए वे बिना आपकी टिप्पणियों के भी आपको पढना जारी रखेंगे !
मुझे लगता है भीड़ द्वारा पढ़े जाने से बेहतर है कि चंद लोग पढ़ें ....
अगर हम लोग किसी अच्छे आदमी को इज्ज़त न दे सकें तो कम से कम उसे कष्ट न पंहुचाएं ....उम्मीद करता हूँ कि धीरे धीरे लोग यह समझेंगे ! :-)
सलूजा जी मुझे भी आए कोई ज्यादा समय नहीं हुआ है और जब आई थी तो कोई रस्म-रिवाज नहीं पता था न अब पता है और किसी राजनीति से दूर अपने ब्लॉग पर लिख रहीं हूं...खट्टी-मीठी टिप्पणियों से सीखने को मिलता है, उत्साह बढ़ता है, अपनी रचनाओं पर दूसरों के विचार मिलने से एक संतोष मिलता है और कहीं न कहीं हम एक-दूसरे से भावनात्मक स्तर पर जुड़ते हैं...यह सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण उपलब्धि है क्योंकि इस दुनिया में जहां कभी न कभी आप खुद को अकेला पाते है वहां भावनात्मक स्तर पर आपको सबका प्यार और बड़ों का आशीर्वाद मिले मेरे लिए तो यह अनमोल है। आप से यह उम्मीद नहीं कर रही कि आप टिप्पणि करें, न किसी से करती अगर मन को अच्छी लगती है और मित्रों या अपने से छोटों को कुछ अच्छा लिखते देखती हूं तो उनका उत्साह बढ़ाने को जी चाहता है ...तभी तो वो लोग और अच्छा लिखेंगे...एक अच्छा और रचनात्मक कार्य कर रहे हैं...कोई बुरा काम तो नहीं, इसमें तो सहयोग ही होना चाहिए...और बड़ों की राय हमेशा कुछ सिखाती है.... आप अपनी राय से क्यों महरूम रखना चाहते हैं... वैसे फैसला निश्चित रूप से आपका होगा। आप बड़े हैं, सोच सकते हैं...पर उस खुशी को महसूस करिएगा जो आप की प्रशंसा से किसी को मिलेगी या उसे अपनी गलती पता चलेगी...
ReplyDeleteएक ही बात कहूँगा यहाँ कोई डाक्टर नहीं है और सब डाक्टर हैं । इसलिये हम स्वांत सुखाय के मुताबिक अपना लेखन-पठन कर्म करते चलें । टिप्पणी दें या न दें हमारा अपना फैसला हो सकता है लेकिन मुझे लगता है कि नहीं देना भी सही नहीं है क्योंकि घुलने-मिलने व जिस अपनत्व की चाह में हम यहाँ आए हैं उससे शायद वो मकसद अधूरा रह सकता है । आगे आप उम्र के मुताबिक भी अधिक अनुभव रखते हैं । शुभकामनाएँ...
ReplyDeleteआदरणीय सलूजा साहब, आज मेरे पोस्ट पर आपके कमेन्ट ने और आपकी इस पोस्ट ने मुझे भावुक कर दिया.
ReplyDeleteमैं कुछ अपने में सिमटा हुआ और कुछ तमाम मसरूफियत से घिरा रहा और आपके ब्लौग पर मेरी नज़र पहले नहीं पडी. जबसे ब्लौग जगत के बड़े एग्रीगेटर बंद हुए हैं तबसे नए ब्लौगों की जानकारियां मिलना कम हो गया है.
बहरहाल... मुझे आपका लिखा पढ़कर बेहद ख़ुशी हुई. अब आपकी पुरानी पोस्टों की ओर रुख करने से पहले यह कहता चलूँ कि टिप्पणियों की परवाह किये बिना अपने दिल की बात लिखना ही सर्वश्रेष्ठ लेखन नीति है. मेरे ब्लौग पर रोजाना सैंकड़ों लोग आते हैं पर टिप्पणियां आमतौर पर दस-बीस से ज्यादा नहीं होतीं. मेरे लिए सैंकड़ों लोग अधिक महत्वपूर्ण हैं बनिस्पत चंद टिप्पणियों के.