मैं क्यों लिखता हूँ ?
मैं मसरूफ हो गया |
मैं किस लिए लिखता हूँ?
मैं बोल नही सकता !
इस लिए लिखने पे मजबूर हो गया ,
कड़वा कहने ,सुनने से दूर हो गया|
मेरे लिखे को पडेगा कौन?
मैं ! खुद !
क्या सोचा था ?
याद नही...
क्या लिखा था ...
पड़ लिया मैंने !
कम हो गया बोझ !
दुःख दूर हो गया |
बस इस लिए मैं ,
लिखता हूँ ||
अशोक"अकेला"
बहुत सुन्दर कविता।
ReplyDeleteआदरणीय अशोक सलूजा जी
ReplyDeleteनमस्कार !
प्रशंसनीय रचना - बधाई...मन को छू गयी प्रस्तुति
......एक सुन्दर रचना बधाई...
लखिते रहिए, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteलिखिए जरूर ...
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको
बहुत सुन्दर अभिब्यक्ति| धन्यवाद|
ReplyDeleteमेरे लिखे को पडेगा कौन?
ReplyDeleteमैं ! खुद !
क्या सोचा था ?
याद नही...
क्या लिखा था ...
पड़ लिया मैंने !
कम हो गया बोझ !
दुःख दूर हो गया |
बस इस लिए मैं ,
लिखता हूँ ||
सही कहा...मन और इच्छाएं इसी तरह भटकाती हैं....
लाजवाब, सुन्दर लेखनी को आभार...
sunder kavita !
ReplyDeleteshubhkamanayen !