Thursday, March 10, 2011

ऐहसास ...बस ऐहसास ...और सिर्फ ऐहसास ....

ऐहसास जरूरी है ? 
माना, पंखों में न रही जान
मुझे उंचा उडाने के लिये
मुझ में बाकी अभी जान 
 पंखों को फ़ड्फ़डाने के लिये  


                                
न शायर, न कवि, न ही कोई लेखक हूँ में! न ही मुझ में इतनी समझ कि शब्दों की चाशनी बना कर उससे   
तुकबंदी कर सकूं |न उर्दू जानता हूँ ,न अंग्रेजी का ज्ञाता हूँ | सिर्फ और सिर्फ आसान हिंदी के शब्दों को समझ लेता हूँ | 
और काम चलाने के लिए इसी को लिख लेता हूँ |
 जो थोडा बहुत ज्ञान इंग्लिश या उर्दू के शब्दों को बोलने का आया ,वो सब सुन सुन कर समय के मुताबिक जिन्दगी मैं 
मिले लोगो और हिंदी मैं उर्दू के लफ्जों का प्रयोग , पड़ कर आया |और इंग्लिश तो हर जगह स्कूलों में पदाई जाती है |
सो इस तरह से अपना काम चलाने लायक लिख और समझ लेता हूँ | पर बोलने से कतराता और घबराता हूँ |

   शायरी किसे कहतें हैं ? मैं नही जानता क्यों कि ये एक बहुत बड़ा फलसफां है| पर जो जिन्दगी ने दिखाया ,और 
सिखाया उससे ये ही सीखा कि शायरी किसी पड़े लिखे कि जायदाद ,या अनपड़ की  मोहताज नही | हर वो इन्सान 
कुछ भी लिख सकता है ,जो दिल से भावुक है ,जो दूसरे के दुःख मैं दुखी हो सकता है ,जिसे दूसरे को जाने ,अनजाने  
चोट लगने या लगाने पर उनकी चोट को अपने दिल पर महसूस  कर सकता है |अपना दिल दुखने पर भी 
दूसरों का दिल रखने के लिये हस-बोल सकता है |अकेला रात के घने अँधेरे मैं रो भी सकता है | 

 और फिर  दुखे दिल से जो ऐहसास करता है, उसे कागज पर उतारता है |ये समझ कर कि वो अपना दुःख किसी अनदेखी ,अन्जानी 
शख्सियत के साथ बाँट रहा है | जिन्दगी ने उस को भी सिखाया है कि खुशी बाटने से दुगनी होती  है, और गम बाटने से आधा रह
जाता है | कुछ लिखने के लिए दिल मैं ऐहसास जरूरी है चाहे वो दर्द का ,दुःख का या फिर सुख का | हर शक्स के अंदर एक शायर
छुपा रेहता है ,जैसे हर एक के अंदर एक छोटा बच्चा, कौन कितना मासूम या कितना शरारती ? बस ऐहसास...और ऐहसास...  
जरूरीहै ...!

 अशोक "अकेला "



4 comments:

  1. काफी कुछ आप जैसी ही हूँ । किसी भी भाषा पर बहुत अच्छी पकड़ नहीं है , बस मन के भावों को सादे-सरल शब्दों में कह लेती हूँ । शायद शब्दों से ज्यादा एहसास की ज़रुरत होती है ।

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मैं आपके दिए स्नेह का शुक्रगुज़ार हूँ !
आप सब खुश और स्वस्थ रहें ........

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