जब से बुडापे ने रंग जमाया है
हमारा जीना मुश्किल मैं आया है
हर साल लग जाती है पाबन्दी
घर की चार दीवारी मैं किलेबंदी
कटती है पार्कों मैं अप्रेल से नवम्बर
दिसम्बर से मार्च तक घर के अंदर
ये महीने है सर्दियों के पाले
पड़ जाते है हमें जान के लाले
अब क्या करें मज़बूरी है
डाक्टर की जी-हजूरी है
सर्दी से बचना हमारा जरूरी है
सुबह की धुंध से बचना
और सूर्य दर्शन जरूरी है||
बचपन से ही पड़ गयी पीनी दुखों की हाला
माँ को देखा नही नानी ने मुझ को पाला
फिर बन गया दिल का मरीज भी
बड़ी मुश्किल से दिल को संभाला
बस अब तो लेपटॉप का सहारा है
बस यही इस दुनिया मैं अब हमारा है
हमें भी अब यही सब से प्यारा है
ये न होता तो क्या हो गया होता
बस! जीना हमारा दुश्वार हो गया होता |
अब बनवास भी हमारा घटता जा रहा है
मार्च का महीना जो कटता जा रहा है||
-अशोक"अकेला"
बचपन से ही पड़ गयी पीनी दुखों की हाला
ReplyDeleteमाँ को देखा नही नानी ने मुझ को पाला
फिर बन गया दिल का मरीज भी
बड़ी मुश्किल से दिल को संभाला
मार्मिक अकेला साहब, कहीं दिल की गहराइयों से निकली एक आह !
बहुत ही मार्मिक चित्रण है...
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