Monday, December 23, 2013
Wednesday, December 11, 2013
वो यादें ......बचपन की !!! ये बातें .....बाद पचपन की !!!
वो यादें ......बचपन की !!!
वो शोखियाँ ,
वो मस्तियाँ
वो शरारतें ,
वो खुराफ्तें
वो यादें बचपन की ...
ये उदासियाँ ,
ये वीरानियाँ
ये बेईमानियाँ,
ये शामते
ये बातें ,बाद पचपन की ...
न खौफ़ था ,
न फ़िक्र थी
न थी जिम्मेवारियां
थी बस बचपन की किलकारियाँ
वो यादें बचपन की ...
अब बेबसी है ,
घुटन है ,
हैं दुश्वारियाँ
झेलने को बची है ,
अब बस बीमारियाँ
ये बातें ,बाद पचपन की...
वो बचपन का दौर था
थोड़ा लड़े.थोड़ा भिड़े
निकाला गालीयों पे ज़ोर था...
आया जवानी का दौर था
तूने देखा ,मैंने देखा
थोड़ा मुस्कराये,गले मिले
बस हसीं-ठठ्ठे का ज़ोर था ...
न जाने कब आया
बुढ़ापा मेरी ओर था
शोख बचपन भागा
मस्त जवानी खोई
देख बुढ़ापा आँखे रोई ...
बचपन ने लूटी शरारतें
जवानी ने लूटी मस्तियाँ
बुढ़ापे ने मिटा दी हस्तियाँ
बस बची हैं उजड़ी बस्तियां .....
-----अशोक'अकेला'
Saturday, November 23, 2013
ये यादों का सिलसिला भी, बड़ा अज़ीब होता है ...!!!
गुज़री यादों में, फिर तू याद आ गया
भर आई आँख ,दिल सुकून पा गया...
--अशोक'अकेला'
यादें हमेशा साथ रहती हैं ,
पर नसीब नही होतीं
गर याद न करो इनको
तो ये भी करीब नही होती
दिन तो गुज़रा गोरख-धंधों में
यादें न करीब होती हैं
आती है जब रात अँधेरी
नींद करती है आने में देरी
दिलो-दिमाग जब उथल-पुथल जाता है
तब यादों का सिलसिला करीब आता है
अब दिमाग थकावट से चूर है
दिल यादों का साथ निबाहने को मजबूर है
इन यादों में बसा दिल का नासूर है
सुख-दुःख देती हैं यादें इनका दस्तूर है
मीठी यादें चेहरे पर मुस्कराहट लाती हैं
गमगीन यादें आँखों से आंसू गिराती हैं
इसी तरह यादों की लोरी सुनते-सुनते
सो जाता हूँ ख्वाबो को बुनते-बुनते......
ये यादों का सिलसिला भी बड़ा अज़ीब
होता है .....
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अशोक'अकेला' |
Sunday, November 10, 2013
अपनों से कटा....टुकड़ों में बटा....
भ्रम का मारा....ये दिल बेचारा !!!
सब जानते-बुझते भ्रम अपने को मैं
पालता रहा .....
होंटों पे नकली हंसी चेहरे पे ख़ुशी ओड़
दिल को निहारता रहा .....
जानता था ,भ्रम टूटने से दुखेगा दिल
बस टालता रहा .....
सच! बड़ा दुखता है दिल .भ्रम टूटने से
इसी लिए संभालता रहा .....
बार-बार चोट खाकर भी मैं दिल अपने को
यूँ ही सालता रहा .....
भ्रम तो भ्रम था ,टूटना ही था इक दिन
फिर भी सहारता रहा .....
भ्रम टुटा .टुकड़े हुए .बिखरे टुकडो को
बस जोड़ने में जागता रहा .....
ले कर टुटा दिल ,संभाल के टुकड़ों को
'अकेला' सब से दूर भागता रहा .....
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अशोक'अकेला' |
Saturday, October 26, 2013
ब्लॉग बनाम फेसबुक !!!
सोच अपनी, समझ अपनी, नज़रिया अपना
जिसको जो अच्छा लगता है वो,
वो ही करता रहे, सब अच्छा है
कोई बुरा न माने ..ये मेरा नज़रिया है ....
ये है ब्लॉग की दुनियां !!!
हकीक़त से रूबरू कराए
रोतों को हँसना सिखाये
सुख-दुःख मिल के बटाए
मिल-जुल त्यौहार मनाये
गज़ल.गीत नज्में सुनाये
ज्ञान की बाते सिखाये
हर तरह की बात बताये
टिप्पणी हौंसला बड़ाये
हसीन सपने सजाये
दिलों से दिल मिलाये
जिसको जो अच्छा लगता है वो,
वो ही करता रहे, सब अच्छा है
कोई बुरा न माने ..ये मेरा नज़रिया है ....
हकीक़त से रूबरू कराए
रोतों को हँसना सिखाये
सुख-दुःख मिल के बटाए
मिल-जुल त्यौहार मनाये
गज़ल.गीत नज्में सुनाये
ज्ञान की बाते सिखाये
हर तरह की बात बताये
टिप्पणी हौंसला बड़ाये
हसीन सपने सजाये
दिलों से दिल मिलाये
आभासी रिश्ते बनाएं
ये है ब्लॉग की दुनियां .....
ये है फेसबुक की दुनियां !!!
ये वक्ती मेले लगाये
खाया-पिया स्टेटस बताये
हर पल सब को सताए
कमेंट्स के पास न जाये
बेदिली लाइक लगाये
रिस्की रिश्तें बनाये
नकली मेल कराये
झूठे सपने दिखाए
झूठी कसमें खाये
पास न कुछ रह जाये
वो है फेसबुक की दुनियां....
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अशोक'अकेला |
Wednesday, October 09, 2013
अपने-अपने ज़माने का .....ये बचपन !!!
अपने ज़माने का .....वो बचपन !!!
आज भी भूले-भुलाये न भूले
वो बचपन
माँ का दुलारा था
वो बचपन
आँखों का तारा था
वो बचपन
नानी की गोदी में गुज़ारा
वो बचपन
शरारतों से भरपूर था
वो बचपन
कितना मासूम था
वो बचपन
कितना निर्दोष था
वो बचपन
अपनों का प्यारा था
वो बचपन
बूढों का सहारा था
वो बचपन
कितना सुहाना था
वो बचपन
सब से न्यारा था
वो बचपन ......
काश! कि लौटा लाऊं
वो बचपन
अपनी यादों का सहारा
वो बचपन
मासूम सी मुस्कानों का
वो बचपन
रोने से पहले की शक्ले बनाना का
वो बचपन
किस्से-कहानियाँ सुनाता
वो बचपन
सब कुछ भुला के याद आये
वो बचपन
मेरे ज़माने का था अपना
वो बचपन
इस लिए इतना सुनहरा था
वो बचपन.....
आज भी भूले-भुलाये न भूले
वो बचपन
माँ का दुलारा था
वो बचपन
आँखों का तारा था
वो बचपन
नानी की गोदी में गुज़ारा
वो बचपन
शरारतों से भरपूर था
वो बचपन
कितना मासूम था
वो बचपन
कितना निर्दोष था
वो बचपन
अपनों का प्यारा था
वो बचपन
बूढों का सहारा था
वो बचपन
कितना सुहाना था
वो बचपन
सब से न्यारा था
वो बचपन ......
काश! कि लौटा लाऊं
वो बचपन
अपनी यादों का सहारा
वो बचपन
मासूम सी मुस्कानों का
वो बचपन
रोने से पहले की शक्ले बनाना का
वो बचपन
किस्से-कहानियाँ सुनाता
वो बचपन
सब कुछ भुला के याद आये
वो बचपन
मेरे ज़माने का था अपना
वो बचपन
इस लिए इतना सुनहरा था
वो बचपन.....
आज का ....आपका ये बचपन !!!
कैसा न्यारा है आज का
ये बचपन
कहाँ से प्यारा है आज का
ये बचपन
कितनी सी देर का बेचारा है आज का
ये बचपन
सिर्फ दो साल का है आज का
ये बचपन
इन्टरनेट का मारा आज का
ये बचपन
रियाल्टी-शो का सहारा आज का
ये बचपन
मोबाइल पर गेम का प्यारा आज का
ये बचपन
फेसबुक पर चैट का मारा आज का
ये बचपन
अंधे सपनों को ढोता आज का
ये बचपन
माँ-बाप की ईगो का सहारा आज का
Monday, September 23, 2013
यह सोच....फिर चुप सा हो गया हूँ मैं !!!
उनसे प्यार की बात कही नही जाती
बेरुखी मुझसे उनकी सही नही जाती
---अशोक "अकेला "
यह सोच....फिर चुप सा हो गया हूँ मैं !!!
बहुत देखा,बहुत सुना ,
बहुत सहा,कुछ न कहा
बहुत बहलाया सबको
बहुत फुसलाया सबको
फिर चुप सा हो गया हूँ मैं....
न किसी ने देखा
न किसी ने भाला
न किसी ने समझा
न किसी ने जाना
फिर चुप सा हो गया हूँ मैं....
मैं चुप क्यों हूँ
मैं गुम क्यों हूँ
न किसी ने पूछा
मैं सुन्न क्यों हूँ
फिर चुप सा हो गया हूँ मैं....
न जवाब कोई भी पाता हूँ
बेबस हो कर रह जाता हूँ
सब की सुनता हूँ
ख़ुद को सुनाता हूँ
फिर चुप सा हो गया हूँ मैं ....
बिछुड़े हुए उस मीत को
याद कर अपने अतीत को
दिल को अब हैरानी सी है
आँखों में अब वीरानी सी है
फिर चुप सा हो गया हूँ मैं....
न अब कोई भी आएगा
न कभी मुझको मनायेगा
कभी मैं भी था उनका अपना
न कभी यह अहसास कराएगा
फिर चुप सा हो गया हूँ मैं ....
लाख समझाया दिल को
बहुत मनाया दिल को
बहुत भरमाया दिल को
बहुत सताया दिल को
फिर चुप सा हो गया हूँ मैं...
शायद इस उम्र का असर हो
आने वाली मंजिल का सफ़र हो
अपने से जब भी सवाल करता हूँ
पर दिल के जवाब से भी डरता हूँ
ये सोच... फिर चुप सा हो गया हूँ मैं !!!
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अशोक'अकेला' |
Friday, September 06, 2013
बड़ा संतुष्ट हूँ .....
बड़ा संतुष्ट हूँ .....
मैं अपने जीवन से , इसका
मुझे अभिमान है ..
कहने को पास कुछ भी नही
पर सबसे बड़ी दौलत वो पास
मेरा, स्वाभिमान है ...
क्या रखा है ,दुनिया की इस
अमीरी में ...
झूठ,मक्कारी धर्म है, जिस का
न कोई, ईमान है...
प्यार से मिल के रहें हम
सब को सदबुद्धि मिले .मांगू
उसी से जो हम सब का,
भगवान् है ....
आये अकेला. जाये अकेला
ज़रूरत है जितना ,इकठ्ठा किया
उतना ही, सामान है ...
.
मैं प्यार बाँटू.मुझे प्यार मिले
बस इतना सा अपना,
अरमान है ....
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Thursday, August 29, 2013
क्या खबर थी.... लबे इज़हार पे ताले होंगे !!!
वो बातें दिल का ग़ुबार होती हैं
जो बातें बयाँ के बाहर होती है
---अशोक "अकेला "
उम्मीद करता हूँ , मेरी पसंद ,आप के दिल को
भी भायी होगी .....
खुश रहें,स्वस्थ रहें!
अशोक सलूजा !
जो बातें बयाँ के बाहर होती है
---अशोक "अकेला "
यादों की गठरी खुली और फिर वो ज़माना
याद आया ..जब ये गुलाम अली साहब की
दर्द भरी ग़ज़ल को गाने का मन करता था .....
खूब गुनगुनाया करता था ...जैसे चुपके से कोई
सन्देश दे रहा हो किसी अपने को ...अपने दिल
की बात ...दिल का दर्द... बयाँ कर रहा हो !!!
ओह ! पर आज तो मैं आप को अपनी पसंद
सुनाने जा रहा हूँ ..तब से आप का, क्या लेना-देना ....
उस रास्ते पर चल कर मैं तो उसे अपने पीछे छोड़
आया ..आज कोई और उस रास्ते पर चल रहा है...
कल कोई और उस रास्ते पर चलेगा,कभी न कभी,
तो हर शख्स के सामने ये रास्ता आता ही है..........
तो आइये मेरे साथ मैं आप को सुनवाता हूँ आज
अपनी पसंद की ग़ज़लों में से एक ग़ज़ल .....
सुरों से सजाया है ...ज़नाब गुलाम अली साहब ने..
अहसासों से लिखा ....ज़नाब परवेज़ जालंधरी साहब ने..
तो आप भी महसूस कीजिये इस में दिए गये
किसी के दर्द भरे सन्देश को ......
..
जिनके होंटों पे हंसी ,पाँव में छाले होंगे
हाँ वोही लोग तेरे चाहने वाले होंगे
मय बरसती है फ़िजाओं पे ,नशा तारी है
मेरे साक़ी ने कहीं ज़ाम उछाले होंगे
जिनके होंटों पे हंसी ,पाँव में छाले होंगे.......
शमा ले आयें हैं हम, जलवागर जाना से
अब तो आलम में उजाले ही उजाले होंगे
जिनके होंटों पे हंसी ,पाँव में छाले होंगे.....
हम बड़े नाज़ से आये थे तेरी महफ़िल में
क्या खबर थी लबे इज़हार पे ताले होंगे
जिनके होंटों पे हंसी ,पाँव में छाले होंगे.......
जिनके होंटों पे हंसी ,पाँव में छाले होंगे
उम्मीद करता हूँ , मेरी पसंद ,आप के दिल को
भी भायी होगी .....
खुश रहें,स्वस्थ रहें!
अशोक सलूजा !
Friday, August 23, 2013
माँ से मुलाकात ......ख़्वाबों में !!!
सोने से पहले, पुकारता हूँ मैं "माँ"
कितने पवित्र ये, दो शब्द के बोल हैं
सब दुःख दर्द, ये मेरे हर ले जाएँ
बोल के परखो, ये इतने अनमोल हैं....
अशोक "अकेला"
कितने पवित्र ये, दो शब्द के बोल हैं
सब दुःख दर्द, ये मेरे हर ले जाएँ
बोल के परखो, ये इतने अनमोल हैं....
अशोक "अकेला"
माँ से मुलाकात ......ख़्वाबों में !!!
जब कभी मैं, परेशानी में होता हूँ
मैं माँ की, निगेहबानी में होता हूँ
सोने से पहले, आँखों को धोता हूँ
तू आ ख्वाबों में, अब मैं सोता हूँ
वो सिरहाने मेरे, जागती है रात-भर
मैं चैन से उसके, आँचल में सोता हूँ
वो बेचैन हो जाती है, देख के मुझको
मैं जब कभी डर के, सपनों में रोता हूँ
ममता से भरा हाथ, फेरती है माथे पर
हंसी उसके लब, मैं मुस्कुरा रहा होता हूँ
छुपा के सर गोदी में, गुदगुदा के उसको
झूठी-मुठी रूठी माँ को, मना रहा होता हूँ ....
काश! मेरी नींद न टूटती उम्र भर ......
|
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अशोक'अकेला' |
Saturday, August 03, 2013
उफ़!!! न कर....
मेरी जिन्दगी थी बेआसरा
तेरे आसरे से पहले .....
--अशोक'अकेला'
तेरे आसरे से पहले .....
--अशोक'अकेला'
उफ़! न कर
तू अब लब सी ले ...
मिले ग़र ज़हर का प्याला
आँख मूंद उसे पी ले ...
जिन्दगी में आयेगे
वो मंज़र भी
जिसे तू देखना न चाहे
याद कर बीते
सुहाने पलों को
उन पलों में जी ले ...
कट जायेगा दिन
ढल जाएगी रात
आयें आँख में आंसू
कोर होने दे गीले...
कर बिछोना धरती पर
ओढ़ बादल आसमानी नीले ...
बरसेंगी सुहानी बारिश की बुँदे
फूल खिलेंगे सरसों के पीले ...
बस उफ़ न कर ,तू अब लब सी ले ........
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अशोक'अकेला' |
Saturday, July 13, 2013
चलो ज़रा.... यादों को बुलायें !!!
इक चक्कर लगाने का मन है
अपने बीते सुहाने दिनों का
आज फिर उदास है दिल अपना
चलो ज़रा यादों को बुला लेता हूँ .....
कोई सीखे ज़रा इन भूली यादों से
वफ़ा क्या है ,कैसे निभाई जाती है
जब भी फुर्सत हो तुमे, बुला लो इनको
ये बिन कुछ पूछे ,बस दौड़ी चली आती हैं
उदास दिल को बहलाने चली आएँगी
अकेले हो साथ निभाने चली आएँगी
ग़र मिल गया जब भी कभी साथ तुमे
चुपचाप मुड़ के ये वापस चली जायेंगी
कभी शिकवा भी न करेंगी. ये तुमसे
कहाँ रहते हो आजकल इतने गुम से
जब परछाई भी न देगी, साथ तुम्हारा
ये तब भी रहेंगी सहारा, बनके तुम्हारा
न ज़रूरत हो तुमे ,ये पास भी नही फटकती
कोने में चुपचाप पड़ी हैं ,कभी नही खटकती
ये वो हैं जिन्हें तुम छोड़ के, आगे बढ़ आये
तब से पड़ी हैं राहों में, पुकारो ! इनको ये चली आयें .....
---अशोक'अकेला'
Thursday, June 27, 2013
सुकून मिलता है ....अतीत में !!!
मैं देखता हूँ ,अपने अतीत में
तूने डेरा अपना जमा रखा है
दिल के हर टूटे हुए टुकड़े में
तूने चेहरा अपना छुपा रखा है
---अशोक "अकेला "
सुकून मिलता है ....अतीत में !!!
ज्यों काफ़िर मुहँ से लगी छूटती नही
ये यादों की लड़ी कभी भी टूटती नही
कुछ अरसे के लिए हो जाता हूँ ,बेखबर
फिर भी ये कभी मुझसे यूँ रूठती नही
करने लगता हूँ याद बीती हुई यादें तभी
जब कभी मुझे कोई ख़ुशी सूझती नही
इन में समाई हैं मेरे सुख-दुःख की हवाएं
जिन्हें आज की ज़हरीली हवा लूटती नही
बिखर जाती है मेरी सोच अनेक यादों में
वहाँ कोई भी आँख, शक से घूरती नही
पलट के देखने दो मुझे यादों की तरफ
चारों तरफ अब मेरी निगाह घूमती नही
लौट के सुकून मिल जाता है 'अकेला' अतीत में
वर्तमान में तो अब सुकून की हवा झूमती नही....
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कैनेडा ,टोरंटो से ....
Thursday, June 13, 2013
मौसम आयेंगें.... मौसम जायेंगें......!!!
आज का मौसम देख कर परदेस में अपने देस की बहुत
याद आ रही है,देस में गर्मी से आप झुलस रहें है .और यहाँ
जनवरी का मौसम बना हुआ है ,और मैं अपने कानो पर
हेडफोन लगाये हुसैन बन्धुओं से ..मौसम आयेंगे ,मौसम
जायेंगें ...हम तुम को न भूल पायेंगें.....सुन रहा हूँ और
अपने देश के मौसम को याद करके उसका मज़ा ले रहा हूँ ....
वहां के मौसम की यादों के साथ अपने आप को बहने से
रोक नही पा रहा हूँ ,,,,,
वो सर्दी के मौसम में सुबह की धूप का मज़ा,
वो सर्दी की लम्बी रातों में लिहाफ़ में सोने का मज़ा और फिर चुस्कियां
ले ले कर गर्म -गर्म चाय पीने का मज़ा .....
और अब गर्मी की झुलसती धूप की दोपहरी का सूनापन ,
धूल भरी आँधियों के शोर में शाम की ठंडी-ठंडी हवाओं का इंतज़ार ...
साथ में ठन्डे-ठन्डे तरह-तरह के पेय को पीने की ललक ..वाह!
उसका मज़ा भी अपना ही है ......गर्मी को दूर करने के तरह-तरह
के उपाय वाह!.....
और फिर सावन की ठंडी-ठंडी फुहारों का इंतज़ार ....सावन के गीत ,
सावन के झूले ,सावन की बारिश... आँख बंद करके छीटों से चेहरे
को भिगोना और अपने चाहने वालों की यादों में खो जाने ...का मज़ा
ही अपने देस में है ....
शायद इसी लिए परदेस में देस की बहुत याद आती है .....
वैसे भी तो हम हिन्दुस्तानी है ...भावुक होना हमारी फितरत
और दूर जा कर अपनों को याद करना ,कद्र करना ही हमारी
रगों में समाया है ....
पास रहकर हम हो जाते है लापरवाह
दूर होते ही ,पुकारते है आ तू पास आ .....
चलिए ..छोडिये ..लिखना मुझे आता नही और मैं भावुकता
में बहता जा रहा हूँ ....
बाकि की कसर मैं अपने हुसैन बन्धुओं की ये खुबसूरत
मौसमों के ऊपर गाई ग़ज़ल आप सब को सुनवा कर अपने
ज़ज्बातों को महसूस कराने की कोशिश करता हूँ....
उम्मीद करता हूँ ,,
आप का प्यार मिला तो कामयाब हो जाऊंगा |
तो सुनिए .........
खुश और स्वस्थ रहें.....
टोरंटो (कनाडा)
Monday, June 03, 2013
मैंने उसको....सताया नही !!!
करता था मैं उनसे प्यार
और आज भी करता हूँ,
पहले वो मुझ पे मरते थे
आज मैं उनपे मरता हूँ ||
और आज भी करता हूँ,
पहले वो मुझ पे मरते थे
आज मैं उनपे मरता हूँ ||
----अशोक"अकेला"
मैंने उसको....सताया नही !!!
कलम हाथ में लिए बैठा हूँ
उसने कुछ सुझाया ही नही
बोला दिल कुछ,मुझसे ऐसे
किसी ने मुझे,दुखाया ही नही
क्या लिखाऊं,क्या सुझाऊ तुझे
आज किसी ने तड़फ़ाया नही
चारों तरफ है सुहाना लगे
आज मैं भी घबराया नही
उसने भी कह दी अपनी बात
और मैं भी आज शरमाया नही
कुछ ऐसा भी कहा कान में
मेरी कुछ समझ आया नही
मैंने भी छोड़ दिया उसको'अकेला'
आज मैंने भी उसको सताया नही ....
---अशोक 'अकेला'
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आप के लिए ..Toronto Canada से ...
स्वस्थ रहें!
Thursday, May 23, 2013
मुझे तो बीती यादों से दिल बहलाना है .... !!!
आजकल अपने वतन से दूर ....और अपनी छोटी बेटी के
बहुत पास टोरंटो (केनाडा) में श्रीमती जी के साथ ,और अपनी
दोनों नातिन के संग समय बहुत अच्छा कट रहा है ........!!!
पर फिर भी बाकी समय तो ........|
मुझे तो बीती यादों से दिल बहलाना है .... !!!
खुशीयों से नही अदावत मेरी
बस ग़मों से रिश्ता पुराना है
आज मुस्कराहट है मेरे चेहरे पर
कि आज फिर मौसम सुहाना है
उदास हो जाता हूँ ,जब कभी
याद आता वो वक्त पुराना है
जब भी याद आ जाते हैं वो
याद आता वो गुज़रा जमाना है
अब कुछ भी रहा मेरे पास नही
बस बीती यादों का वो खज़ाना है
हिम्मत नही किसी से कुछ कहने की
देख-सुन कर अब सिर्फ मुस्कराना है
भले नश्तर चुबोयें वो मेरे दिल को आज
मुझे तो बीती यादों से दिल बहलाना है ....
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आप सब बहुत खुश और स्वस्थ रहें |
शुभकामनायें!
अशोक सलूजा |
Monday, May 13, 2013
आ...एक बार तो... मनाने के लिए आ!!!
शिकायतों के सिवा जब
कुछ भी न हो पास तेरे,
रख बन्द जुबान अपनी
लगा ले बस चुप्पी के डेरे ||
---अशोक 'अकेला'
आजकल रोज़ दिल, दुखा जाता है वो
याद रहता है मुझे, भूल जाता है वो
हे भगवन ,ये कैसा मुकद्दर पाया है मैंने
हँसाने की कोशिश में, रुला जाता है वो
बहुत मनाया, समझाया भी उसको मैंने
हर बात को मेरी,हवा में उड़ा जाता है वो
मजबूर हूँ क्या करूँ, कमज़ोरी है वो मेरी
दिल को फिर, किसी बात पर भा जाता है वो
करता हूँ जब भी मैं, दूर रहने की कोशिश
ज़हन पर आ कर, फिर छा जाता है वो
मायूस हो कर बैठ जाता हूँ, मैं जब भी कभी
अच्छे मूड में हो, तो रहम खा जाता है वो
'अकेला' रोज़ सोचता हूँ, न अब उससे आँख मिलाऊंगा
ढ़ुंढ़ती हैं आँखें उसको, जब भी याद आ जाता है वो
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अशोक'अकेला' |
Friday, May 03, 2013
जब भी रोना हो !!! चिरागों को बुझा कर रोना...
मुहँ की बात सुने हर कोई
दिल के दर्द को जाने कौन
आवाजों के शहरों में
ख़ामोशी पहचाने कौन....
---निदा फ़ाज़ली
यादें ......
अपनी यादों की पोटली से निकाल कर लाया हूँ ....
आप के लिए एक गज़ल...
जो अपने खुबसूरत अल्फाज़ों से सजाई है,
ज़नाब मीर ताक़ी मीर ने और गाया है अपनी दर्द भरी
मीठी आवाज़ में ज़नाब मरहूम परवेज़ मेहदी साहब ने ......
इस गज़ल में ख़ामोशी के आवाज़े हैं ....
दिल के दर्द का सुकून है ...
आँखों में अश्को की छुपी बरसात है ...
दिल के किसी कोने में छुपी यादों की बारात है ...
ग़म का बिछौना है ...
ग़र फिर भी सुकून से सोना है ....
तो ज़रूरी...चैन से रोना है ...
तो बस!!! उस रोने की ही बात है !!!
अपने साये से भी ,अश्को को छुपा कर रोना
जब भी रोना हो ,चिरागों को बुझा कर रोना
हाथ भी जाते हुए , वो तो मिला कर न गया
मैंने चाह जिसे ,सीने से लगा कर रोना
जब भी रोना हो ,चिरागों को बुझा कर रोना...
तेरे दीवाने का ,क्या हाल किया है ग़म ने
मुस्कराते हुए लोगो में भी जा कर रोना
जब भी रोना हो ,चिरागों को बुझा कर रोना...
लोग पढ़ लेते हैं ,चेहरे पे लिखी तहरीरे
कितना दुश्वार है लोगो से छुपा कर रोना
जब भी रोना हो ,चिरागों को बुझा कर रोना ...
अपने साये से भी ,अश्को को छुपा कर रोना
जब भी रोना हो ,चिरागों को बुझा कर रोना |
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उम्मीद करता हूँ कि मेरी पसंद ....
आप को भी पसंद आई होगी !!!
खुश रहें,स्वस्थ रहें !
Tuesday, April 23, 2013
टूटे रिश्तों को...जोड़ लेता हूँ !!!
जिन्दगी के टूटे सिरों को
मैं फिर से जोड़ लेता हूँ,
ग़मों के बिछोने पर
ख़ुशी की चादर ओड़ लेता हूँ...
---अशोक 'अकेला'
टूटे रिश्तों को...जोड़ लेता हूँ !!!
अपने हौंसलो से, होड़ लेता हू
मिले महोब्बत, निचोड़ लेता हूँ
दुनियां के झूठे, रीति-रिवाजो से
मुस्करा , मुहँ को मोड़ लेता हूँ
अपने ग़मों के, बिछोने पर
ख़ुशी की चादर, ओड़ लेता हूँ
उलझी जिन्दगी, की डोर को
हाथ से ख़ुद, तोड़ लेता हूँ
अब तो आदत, सी हो गई है
टूटे रिश्तों को, जोड़ लेता हूँ
ज़माने संग, चल सकता नही अब
बस 'अकेला' सपनों में, दोड़ लेता हूँ...
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अशोक'अकेला' |
Tuesday, April 09, 2013
सब कुछ सिखाती है .....ये जिन्दगी !!!
पग-पग सिखाती है कुछ नये ढंग, ये जिन्दगी
पल-पल दिखाती हैं कुछ नये रंग, ये जिन्दगी
किसको कहूँ पराया, किसे कहूँ मैं अपना
हर घड़ी मुझको बताती है, ये जिन्दगी
टेड़े-मेढे, ऊँचे-नीचे रास्तों पर है मंजिल
रास्तों पर चलना सिखाती है, ये जिन्दगी
जो कल गले मिले आज पहचानते नही
ऐसे-ऐसे लोगों से मिलाती है, ये जिन्दगी
सीना फुला के चलें ,सर तान के उम्र भर
ऐसे-वैसे लोगों का सर झुकाती है, ये जिन्दगी
मैं....मैं हूँ, पड़ जाती है गलतफ़हमी जिसे
फिर उसको बड़ा सताती है, ये जिन्दगी
जो प्यार से सब को लगाये गले अपना बनाये
"अकेला"उसी को प्यार से सजाती है, ये जिन्दगी....
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अशोक'अकेला' |
Monday, April 01, 2013
ख्वाबो ...हकीक़त की दुनियां ...!!!
तुम ख्वाबों में बहते हो
मैं हकीक़त में रहता हूँ ,
तुम आसमां पे उड़ते हो
मैं जमीं पे रहता हूँ ||
---अकेला
इक ख्वाबो की दुनियां
इक हकीक़त की दुनियां
इक आसमां पे उड़ाती है
इक जमीं से उठाती है
इक खुशियाँ बरसाती है
इक आग सी लगाती है
इक सपने दिखाती है
इक सपने दफनाती है
इक महल बनाती है
इक झोंपड़ा गिराती है
इक उम्मीद जगाती है
इक ना-उम्मीद कराती है
इक चाँद-तारे सजाती है
इक रातों को रुलाती है
इक बस्ती बसाती है
इक हस्ती मिटाती है
लो सपने ने मारा झटका
मुझे जमीं पे ला के पटका
वो इक सपना था
यह इक हकीक़त है ......
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अशोक'अकेला' |
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